शनिवार, 21 अप्रैल 2018

सीजेआई के विरुध्द महाभियोग के निहितार्थ

सीजेआई पर आरोप प्रत्यारोप अलग बात है पर असल मकसद को समझना चाहिए....

चीफ जस्टिस 2 अक्टूबर को रिटायर होने वाले हैं। विपक्ष के पास इतने सदस्य नहीं हैं कि महाभियोग को उसकी मंजिल तक पहुँचा सकें फिर ये महाभियोग के उपक्रम की कवायद क्यों हो रही है?

इस महाभियोग के उपक्रम की एक तार्किक वजह है, 'विपक्ष का कर्तव्य निर्वहन' विपक्ष को अपना कर्म करना है, यही वह कर भी रहा है, विपक्ष थाली में सजाकर अपने विरोधी को सत्ता क्यों सोंपेगा। सत्ताधारी को उसने चुनौती दी है, सत्ताधारी दल को यह परीक्षा देना ही होगी। चक्रव्यूह बनकर तैयार है, विपक्ष के बनाये चक्रव्यूह को भेदना सत्ता दल का काम है उसे इस चक्रव्यूह को भेदना ही होगा, भलेही इस चक्रव्यूह भेदन में अभिमन्यु की बलि ही क्यों न चढ़ जाये।

ये महाभियोग का पूरा उपक्रम मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वकील और षडयंत्र रचने में माहिर शकुनि से भी तेज, कांग्रेस के शिरोमणि नेता कपिल सिब्बल के तीक्ष्ण दिमाग की उपज है।

दरअसल राम मंदिर पर नियमित सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में शुरू होने वाली है। यह महाभियोग उसी की काट के रूप में रचित एक उच्चस्तरीय षडयंत्र है। कानून में महाभियोग लाने का प्रावधान है, संविधान के इसी प्रावधान का इसमें सहारा लिया गया है।

राम मंदिर केश की सुनवाई उस बेंच को करना है जिसे CJI दीपक मिश्रा जी लीड करने वाले हैं.. सुनवाई तेज़ी से होगी और चूंकि सारे साक्ष्य चाहे वो लैंड रिकार्ड्स हों या पुरातात्विक सबूत, सब राम मंदिर के पक्ष में हैं। विपक्ष को राम मंदिर के पक्ष में फैसला आने का अंदेशा है, यही अंदेशा उसकी हड़बड़ाहट बढ़ा रहा है। यह हड़बडाहट ही महाभियोग लाने की विवसता भी है।

राम मंदिर का मुद्दा जाने अनजाने में रानैतिक मूवमेंट बना हुआ है। चूँकि इस मूवमेंट को जन जन में बीजेपी के शीर्षस्थ पुरुष लालकृष्ण आडवाणी जी ने पहुँचाया है, विपक्ष को डर है कि यदि 2019 के पहले राम मंदिर के पक्ष में फैसला आया तो इसका सीधा फायदा bjp को मिल सकता है। विपक्ष इस संभावना को पूरी तरह खतम करना चाहता है।

सीजेआई के विरुद्ध महाभियोग लाना विपक्ष यह एक रणनैतिक निर्णय है, विपक्ष को यह रणनीति बनाना ही चाहिये थी क्योंकि राम मंदिर का यह मुद्दा अभी तक अनेक सरकारों के श्रजन और संहार की कहानी को अपने अंक में समेटे हुये है।

CJI के खिलाफ महाभियोग से क्या होगा?

होगा ये कि जब सदन में महाभियोग का प्रस्ताव रखा जाएगा तो नियमानुसार CJI किसी केस की सुनवाई तब तक न कर सकेंगे जब तक जाँच पूरी न हो और प्रस्ताव पर वोटिंग न हो।

विपक्ष यह जानता है कि जाँच में समय लगेगा और जब तक वोटिंग होगी 3 महीने गुज़र चुके होंगे। उसे पता है के महाभियोग का प्रस्ताव गिर जाएगा लेकिन तब तक केस का काफी समय बर्बाद हो चुका होगा फिर दीपक मिश्रा के पास इतना समय नहीं होगा कि अपने रिटायरमेंट तक वह केस को निपटा पाएं।

2 अक्टूबर के बाद CJI बनेंगे रंजन गोगोई। जज तो जज होते हैं, उनमें भेदभाव तलाशना भी गलत है पर विपक्ष को वह अपने जैसे सैडो सैक्यूलर लगते हैं, हिन्दू विरोधी खेमे को उनमें अपनापन दिखता है। विपक्ष इसी पृष्ठभूमि पर यह रणनैतिक खेल खेलना चाहता है। दूसरी बात यह है कि विपक्ष को यह भी लगरहा है कि वर्तमान सीजेआई मिश्रा उनसे मेनेज नहीं हो पा रहे हैं, विपक्ष का यह भी एक अंध विश्वास है कि भविष्य के सीजेआई को वह मैनेज कर लेगा।

राम मंदिर के पक्षधरों का यह कहना कि 'विपक्ष राम मंदिर निर्माण रुकवाने के लिए इतना नीचे गिर जाएगा क्या? राम मंदिर के पक्षधरों का यह सोचना और कहना भी गलत है, हिन्दुओं को हतोत्साहित करने का काम विपक्ष पहले भी करता रहा है और आगे भी करेगा। विपक्ष को बौद्धिक सहायता देनावाला गैंग हिन्दू विरोधी के साथ, हिन्दूद्वेषी है।

राम मंदिर भारत के स्वाभिमान से जुड़ा मुद्दा है। हिन्दू द्वेषी यह कभी नहीं चाहेंगे कि राम मंदिर बन जाये, भारत स्वाभिमान के साथ स्वाबलंबी बन जाये। कांग्रेस हिन्दू द्वेषी विपक्ष की सहायक बनकर फिर भूल कर रही है। वह हिन्दू विरोधियों को हिन्दू द्वेष की बंदूक रखने के लिये अपना कंधा दे रही है।

कांग्रेस को राम मंदिर के मुद्दे पर राम मंदिर के पक्षधरों का खुलकर साथ देना चाहिए, हिन्दूविरोधी होने का ठप्पा हटाने के लिये 2019 का आम चुनाव कांग्रेस के लिए एक मौका भी है। ध्यान रहे कपिल सिब्बल तेज दिमाग के जरूर हैं वह कांग्रेस के लिये कृष्ण नहीं शकुनि सिद्ध हुये हैं।

बुधवार, 18 अप्रैल 2018

परशुराम जयंती भुज बल भूमि भूप बिनु कीन्हीं

यह त्रेता युग के एक महापुरुष की कहानी है। तब की समाजिक व्यवस्था में और आज की सामाजिक व्यवस्था में बहुत बदलाव हो गया है। तब की घटनाओं के संदर्भ, आज के संदर्भों से बिल्कुल अलग थे। तब वर्ण व्यवस्था थी और जाति व्यवसथा कर्म आधारित थी, जन्म आधारित नहीं थी। ब्राह्मण पुत्र रावण, ब्राह्मण से मृत्युपर्यंत क्षत्रिय बनने के लिये प्रयासरत रहा पर वह क्षत्रिय नहीं बन सका।

महामुनि विश्वामित्र को क्षत्रिय से ब्राह्मण बनने के लिये तप तपस्या की अनेक चुनौतियों को पार करना पड़ा, तब कहीं जाकर उन्हें ब्रह्मत्त्व प्राप्त हुआ। मैं आपको यही बता रहा था कि परशुराम जब के हैं तब समाज अलग तरह का था, आज के संदर्भों को सुनकर त्रेता युगवाले भौंचक रह जायेंगे, ठीक बैसे ही जैसे हम लोग त्रेता युग की बातों को सुनकर दाँतों तले उँगली दबाते हैं।

हाँ तो, यह बात बहुत पुराने जमाने की है, तब आज के जैसी कोर्ट कचहरीं नहीं हुआ करती थीं, तब की न्याय व्यवस्था में न्याय की देवी आँखों पर पट्टी नहीं बाँधती थी। तब की न्याय व्यवस्था में नकली गवाहों को भी उतनी ही सजा दी जाती थी कि जितनी मुख्य अपराधी को। तब अपने पराये का मोह नहीं था और न जातियाँ थीं न आज जैसा जातिवाद का बोलवाला। तब सामाजिक भरोसा तोड़ना भी बड़ा अपराध था।

यह तब की बात है, आज के संदर्भों से इसे समझने की कोशिश न करो। तब इन्होंने उन परिस्थितियों में कैसी भूमिका निभाई, यह संदेश लेने के लिये जरूरी बात है। परिस्थितियाँ जरूर बदली हैं पर भूमिकायें आज भी हैं। अन्याय से लड़ने की, अपने आपको खपाने की, दुनियाँ को निर्भय बनाने की, मौका हाथ से नहीं जाने देने की। परशुराम एक युगान्तरकारी व्यक्तित्त्व का, सूर्य सा चमकता नाम है।

अब राजसिंहासन नहीं हैं। राजसिहासनों को बदलने की बात तो बहुत आगे की बात है, राजसिहासनों को बदलने की सोचने पर भी पसीना आ जाता था। तब महा प्रतापी शूरवीर परशुराम ने ऐय्याशी में डूबे अनाचार और अत्याचार के पर्यायवाची राजाओं के आतंक से धरती को 21 बार मुक्त किया था। उन राजसिहासनों पर उनके उचित उत्तराधिकारियों को बैठाया था। अंतिम बार उन्होंने उस समय के सबसे उत्तम पुरुष राम को गद्दी सोंपी और स्वयं पूर्वदिशा में स्थित महेन्द्र पर्वत पर तप करने चले गये थे।

अनाचार और अत्याचार जिनकी भनक से भागता था ऐसे बज्रबली थे परशुराम। अक्षय तृतिया उनका जनम दिन है। जनश्रुति है कि इन्दौर मुम्बई के मार्ग पर लगभग 50-60 किलोमीटर दूर जानापाव की पहाड़ी जमदग्नि ऋषि का निवास था, उनकी एक संतान परशुराम थे। आदर और श्रद्धा से भरे हम जैसे अनेकानेक लोग उन्हें भगवान परशुराम नाम से संबोधित करते हैं। आज उनका स्मरण हमें हमारी राह पर द्रुत गति से चलने के लिये प्रेरित करेगा।

बुधवार, 11 अप्रैल 2018

मैं सोच रहा हूँ अगर तीसरा युद्ध हुआ तो::नीरज

मैं सोच रहा हूँ अगर तीसरा युद्ध हुआ तो,
इस नई सुबह की नई फसल का क्या होगा।
मैं सोच रहा हूँ गर जमीं पर उगा खून,
इस रंग महल की चहल पहल का क्या होगा॥1॥

ये हंँसते हुए गुलाब महकते हुए चमन,
जादू बिखराती हुई रूप की ये कलियाँ।
ये मस्त झूमती हुई बालियाँ धानों की,
ये शोख सजल शरमाती गेहूँ की गरियाँ॥2॥

गदराते हुए अनारों की ये मंन्द हँसी,
ये पैंगें बढ़ा बढ़ा अमियों का इठलाना,
ये नदियों का लहरों के बाल खोल चलना।
ये पानी के सितार पर झरनों का गाना॥3॥

नैनाओं की नटखटी ढिठाई तोतों की,
ये शोर मोर का भोर भृंग की ये गुनगुन।
बिजली की खड़कधड़क बदली की चटकमटक,
ये जोत जुगनुओं की झींगुर की ये झुनझुन॥4॥

किलकारी भरते हुये दूध से ये बच्चे,
निर्भीक उछलती हुई जवानों की ये टोली।
रति को शरमाती हुई चाँद सी ये शकलें,
संगीत चुराती हुई पायलों की ये बोली॥5॥

आल्हा की ये ललकार थाप ये ढोलक की,
सूरा मीरा की सीख कबीरा की बानी,
पनघट पर चपल गगरियों की छेड़छाड़,
राधा की कान्हा से गुपचुप आनाकानी॥6॥

क्या इन सब पर खामोशी मोत बिछा देगी,
क्या धुंध धुआँ बनकर सब जग रह जायेगा।
क्या कूकेगी कोयलिया कभी न बगिया में,
क्या पपीहा फिर न पिया को पास बुलायेगा॥7॥

जो अभी अभी सिंदूर लिये घर आई है,
जिसके हाथों की मेंहदी अब तक गीली है।
घूँघट के बाहर आ न सकी है अभी लाज,
हल्दी से जिसकी चूनर अब तक पीली है ॥8॥

क्या वो अपनी लाड़ली बहन साड़ी उतार,
जा कर चूड़ियाँ बेचेगी नित बजारों में।
जिसकी छाती से फूटा है मातृत्त्व अभी,
क्या वो माँ दफनायेगी दूध मजारों में॥9॥🎂

क्या गोली की बौछार मिलेगी साबन को,
क्या डालेगा विनाश झूला अमराई में।
क्या उपवन की डाली में फूलेंगे अँगार,
क्या घृणा बजेगी भौंरों की शहनाई में॥10॥

चाणक्य मार्क्स एंजिल लेनिन गांधी सुभाष,
सदियाँ जिनकी आबाजों को दुहराती हैं।
तुलसी बर्जिल होमर गोर्की शाह मिल्टन।
चट्टानें जिनके गीत अभी तक गाती हैं॥11॥

मैं सोच रहा क्या उनकी कलम न जागेगी,
जब झोपड़ियों में आग लगायी जायेगी।
क्या करबटें न बदलेंगीं उनकी कब्रें जब,
उनकी बेटी भूखी पथ पर सो जायेगी॥12॥

जब घायल सीना लिये एशिया तड़पेगा,
तब बाल्मीकि का धैर्य न कैसे डोलेगा।
भूखी कुरान की आयत जब दम तोड़ेगी,
तब क्या न खून फिरदौसी का कुछ बोलेगा॥13॥

ऐसे ही घट चरके ऐसी ही रस ढुरके,
ऐसे ही तन डोले ऐसे ही मन डोले।
ऐसी ही चितवन हो ऐसी कि चितचोरी।
ऐसे ही भौंरा भ्रमे कली घूँघट खोले॥14

ऐसे ही ढोलक बजें मँजीरे झंकारें,
ऐसे कि हँसे झुँझुने बाजें पैजनियाँ।
ऐसे ही झुमके झूमें चूमें गाल बाल,
ऐसे कि हों सोहरें लोरियाँ रसबतियाँ॥15॥

एसे ही बदली छाये कजली अकुलाए,
ऐसे ही बिरहा बोल सुनाये साँवरिया।
ऐसे ही होली जले दिवाली मुस्काये,
ऐसे ही खिले फले हरयाए हर बगिया॥16॥

ऐसे ही चूल्हे जलें राख के रहें गरम,
ऐसे ही भोग लगाते रहें महावीरा।
ऐसे ही उबले दाल बटोही उफनाए,
ऐसे ही चक्की पर गाए घर की मीरा॥17॥

बढ़ चुका बहुत अब आगे रथ निर्माणों का,
बम्बों के दलबल से अवरुद्ध नहीं होगा।
ऐ शान्त शहीदों का पड़ाव हर मंजिल पर,
अब युद्ध नहीं होगा अब युद्ध नहीं होगा॥18॥

शुक्रवार, 30 मार्च 2018

हनुमान जयंती प्रसंग

सही मायने में हनुमान जी उच्च विद्या-विभूषित बल-संपन्न स्फूर्तवान युवक थे, उनकी बुद्धि प्रखर थी तथा वह प्रत्युत्पन्नमति बुद्धि के धनी थे। खतरों से खेलने में वह कदापि नहीं झिझकते थे। आज हनुमान जयंती है इस अवसर पर सबजन हनुमान जी को सही रूप में समझेंगे तो ही हनुमानजी जैसे गुणनिधान महापुरुष भारत वासियों के जीवन को आलोकित करेंगे अन्यथा उनका एक भी गुण कोई गृहण नहीं कर सकता।

आज हनुमान जयंती है। हनुमानजी को लेकर उनके जीवन से संबंधित अनेक भ्रान्तियाँ भारत में प्रचलित हैं उन में से एक दो भ्रान्ति की यहाँँ चर्चा है।

"वह बन्दर थे और पहाड़ उठाकर लाये थे"।

वानर और बन्दर में बहुत अंतर है। वानर नर हैं और बन्दर पशु। संस्कृत में नाम को जानने के अनेक तरीके हैं, उनमैं एक तरीका यह है कि स्थान के नाम से पहचान जैसे नगर र् वन्त दो स्थानों के नाम हैं। नगर के निवासी को नागरिक या नागर कहते हैं। वन के निवासी को वानरिक या वानर कहते हैं।

अयोध्या नगर क्षेत्र है इसलिए राम को नागर कहते थे। नागर या नागरिक प्रचलित नाम हैं। इसी तरह वानर या वानरिक शब्द भी प्रचलित हैं। हनुमान वन निवासी थे। वन के निवासी होने से उन्हें वानर ओर राम को नगर के निवासी होने के कारण नागर कहते थे। नागर और वानर का मेल ही अत्याचार से मुक्ति का कारण बना।

कुछ लोग कहते हैं कि वन में जानवर रहते हैं इसलिए वानर का अर्थ बंदर ही ठीक है। इस कथन पर आप जरा सोचो क्या नगर में जानवर नहीं रहते हैं, जानवर तो नगर में भी रहते हैं। फर्क इतना ही है कि वन की तुलना में नगर में जानवरों की संख्या कम होती है। आज के हिसाब से देखा जाए तो नगरों में ही जानवर अधिक हैं, वनों में तो जानवर बचे ही कहाँ हैं? बहुत कम हो गए हैं।

हनुमान के पिता केसरी थे वह किष्किन्धा राज्य के एक वरिष्ठ मंत्री थे। केसरी के पिता पद्माकर थे वह अत्यधिक विद्वत्ता के कारण भी प्रसिद्ध थे। हनुमान जी भी उच्चशिक्षित और संस्कारों से परिपूर्ण थे। किष्किन्धा एक बहुत बड़ा राज्य था। उस राज्य की सीमायें नर्मदा तक फैलीं हुईं थीं।

साहित्य में अलंकारों का प्रयोग होता है। साहित्य का आभूषण अलंकार ही होते हैं। अलंकारो के प्रयोग को भावार्थ करते समय सही रूप में समझा या समझाया जाता है। साहित्य में शब्दों के पर्यायवाची भी प्रयुक्त होते हैं, साहित्यिक अज्ञानता के कारण अनेक जगह अर्थ का अनर्थ हुआ है। संदर्भों को सही रूप में नहीं समझा गया है।

हनुमान जी पूँछ रहित बलिष्ठ शरीर के उत्तम ज्ञान संम्पन्न युवा थे। वानर नाम से उल्लिखित वह किसी भी रूप में कोई बन्दर नहीं थे। सग्रीव अंगद, द्विद मयंद, नल, नील , गय, गयंद आदि सभी वनाच्छादित राज्य के सुयोग्य नागरिक थे। साहित्य में प्रवचन की परम्परा ने अज्ञानी प्रवचनकारों ने ऐसी भ्रान्तियों को और अधिक बल दिया। भारत में अधिकांश प्रवचन कार साहित्यिक ज्ञान से अछूते तथा इतिहास के मर्म को न समझनेवाले रहे, यही कारण रहा कि कथाओं में भ्रान्तियाँ पुष्ट होती गयीं।

हनुमान जी पहाड़ उठाकर लाये थे यह भी एक भ्रान्ति ही है। अपने कंधे पर किसी आकार का पत्थर रखकर देखो फिर अंदाज लगाओ कि हनुमान जी द्वारा लाया गया, यदि सही में पहाड़ ही होगा तो वह 25-30 किलो से अधिक बजन का पत्थर नहीं होगा। पहाड़ उठाना भी एक मुहाबरा ही है। उसी अर्थ में इसे समझा जाना था। चमत्कार पहाड़ उठाने में नहीं ,चमत्कार तो यह था कि वे समय रहते जड़ी बूड़ी ले आये, दस पाँच प्रकार की एक जैसी दिखनेवाली जड़ी बूटियों को वह इकट्ठा करके ले आये।

चमत्कार के संदर्भ में बात कही जाये तो धरती का अपनी धुरी पर घूमना एक बहुत बड़ा चमत्कार है पर भारत में धरती के इस तरह घूमने को चमत्कार नहीं माना जाता, कोई व्यक्ति अपने हाथ हिलाकर हाथ की सफाई से कुछ वस्तु निकाल दे तो उसे चमत्कार माना जाता है। भारत में अच्छाइयाँ हैं पर अज्ञानता भी कूट कूट कर भरी हुई है। अभी भी भारत में हर जगह अज्ञानता का साम्राज्य फैला हुआ है। विदेशों से आनेवाले यात्रियों ने भारत की अच्छी बुरी दोनों बातों का उल्लेख किया है।

मंगलवार, 27 फ़रवरी 2018

कुछ सपनों के मर जाने से

छिप-छिप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ बहाने वालों
कुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है।

सपना क्या है, नयन सेज पर
सोया हुआ आँख का पानी
और टूटना है उसका ज्यों
जागे कच्ची नींद जवानी
गीली उमर बनाने वालों, डूबे बिना नहाने वालों
कुछ पानी के बह जाने से, सावन नहीं मरा करता है।

माला बिखर गयी तो क्या है
खुद ही हल हो गयी समस्या
आँसू गर नीलाम हुए तो
समझो पूरी हुई तपस्या
रूठे दिवस मनाने वालों, फटी कमीज़ सिलाने वालों
कुछ दीपों के बुझ जाने से, आँगन नहीं मरा करता है।

हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: कुछ सपनों के मर जाने से / गोपालदास 'नीरज'

हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: कुछ सपनों के मर जाने से / गोपालदास 'नीरज'