सीजेआई पर आरोप प्रत्यारोप अलग बात है पर असल मकसद को समझना चाहिए....
चीफ जस्टिस 2 अक्टूबर को रिटायर होने वाले हैं। विपक्ष के पास इतने सदस्य नहीं हैं कि महाभियोग को उसकी मंजिल तक पहुँचा सकें फिर ये महाभियोग के उपक्रम की कवायद क्यों हो रही है?
इस महाभियोग के उपक्रम की एक तार्किक वजह है, 'विपक्ष का कर्तव्य निर्वहन' विपक्ष को अपना कर्म करना है, यही वह कर भी रहा है, विपक्ष थाली में सजाकर अपने विरोधी को सत्ता क्यों सोंपेगा। सत्ताधारी को उसने चुनौती दी है, सत्ताधारी दल को यह परीक्षा देना ही होगी। चक्रव्यूह बनकर तैयार है, विपक्ष के बनाये चक्रव्यूह को भेदना सत्ता दल का काम है उसे इस चक्रव्यूह को भेदना ही होगा, भलेही इस चक्रव्यूह भेदन में अभिमन्यु की बलि ही क्यों न चढ़ जाये।
ये महाभियोग का पूरा उपक्रम मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वकील और षडयंत्र रचने में माहिर शकुनि से भी तेज, कांग्रेस के शिरोमणि नेता कपिल सिब्बल के तीक्ष्ण दिमाग की उपज है।
दरअसल राम मंदिर पर नियमित सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में शुरू होने वाली है। यह महाभियोग उसी की काट के रूप में रचित एक उच्चस्तरीय षडयंत्र है। कानून में महाभियोग लाने का प्रावधान है, संविधान के इसी प्रावधान का इसमें सहारा लिया गया है।
राम मंदिर केश की सुनवाई उस बेंच को करना है जिसे CJI दीपक मिश्रा जी लीड करने वाले हैं.. सुनवाई तेज़ी से होगी और चूंकि सारे साक्ष्य चाहे वो लैंड रिकार्ड्स हों या पुरातात्विक सबूत, सब राम मंदिर के पक्ष में हैं। विपक्ष को राम मंदिर के पक्ष में फैसला आने का अंदेशा है, यही अंदेशा उसकी हड़बड़ाहट बढ़ा रहा है। यह हड़बडाहट ही महाभियोग लाने की विवसता भी है।
राम मंदिर का मुद्दा जाने अनजाने में रानैतिक मूवमेंट बना हुआ है। चूँकि इस मूवमेंट को जन जन में बीजेपी के शीर्षस्थ पुरुष लालकृष्ण आडवाणी जी ने पहुँचाया है, विपक्ष को डर है कि यदि 2019 के पहले राम मंदिर के पक्ष में फैसला आया तो इसका सीधा फायदा bjp को मिल सकता है। विपक्ष इस संभावना को पूरी तरह खतम करना चाहता है।
सीजेआई के विरुद्ध महाभियोग लाना विपक्ष यह एक रणनैतिक निर्णय है, विपक्ष को यह रणनीति बनाना ही चाहिये थी क्योंकि राम मंदिर का यह मुद्दा अभी तक अनेक सरकारों के श्रजन और संहार की कहानी को अपने अंक में समेटे हुये है।
CJI के खिलाफ महाभियोग से क्या होगा?
होगा ये कि जब सदन में महाभियोग का प्रस्ताव रखा जाएगा तो नियमानुसार CJI किसी केस की सुनवाई तब तक न कर सकेंगे जब तक जाँच पूरी न हो और प्रस्ताव पर वोटिंग न हो।
विपक्ष यह जानता है कि जाँच में समय लगेगा और जब तक वोटिंग होगी 3 महीने गुज़र चुके होंगे। उसे पता है के महाभियोग का प्रस्ताव गिर जाएगा लेकिन तब तक केस का काफी समय बर्बाद हो चुका होगा फिर दीपक मिश्रा के पास इतना समय नहीं होगा कि अपने रिटायरमेंट तक वह केस को निपटा पाएं।
2 अक्टूबर के बाद CJI बनेंगे रंजन गोगोई। जज तो जज होते हैं, उनमें भेदभाव तलाशना भी गलत है पर विपक्ष को वह अपने जैसे सैडो सैक्यूलर लगते हैं, हिन्दू विरोधी खेमे को उनमें अपनापन दिखता है। विपक्ष इसी पृष्ठभूमि पर यह रणनैतिक खेल खेलना चाहता है। दूसरी बात यह है कि विपक्ष को यह भी लगरहा है कि वर्तमान सीजेआई मिश्रा उनसे मेनेज नहीं हो पा रहे हैं, विपक्ष का यह भी एक अंध विश्वास है कि भविष्य के सीजेआई को वह मैनेज कर लेगा।
राम मंदिर के पक्षधरों का यह कहना कि 'विपक्ष राम मंदिर निर्माण रुकवाने के लिए इतना नीचे गिर जाएगा क्या? राम मंदिर के पक्षधरों का यह सोचना और कहना भी गलत है, हिन्दुओं को हतोत्साहित करने का काम विपक्ष पहले भी करता रहा है और आगे भी करेगा। विपक्ष को बौद्धिक सहायता देनावाला गैंग हिन्दू विरोधी के साथ, हिन्दूद्वेषी है।
राम मंदिर भारत के स्वाभिमान से जुड़ा मुद्दा है। हिन्दू द्वेषी यह कभी नहीं चाहेंगे कि राम मंदिर बन जाये, भारत स्वाभिमान के साथ स्वाबलंबी बन जाये। कांग्रेस हिन्दू द्वेषी विपक्ष की सहायक बनकर फिर भूल कर रही है। वह हिन्दू विरोधियों को हिन्दू द्वेष की बंदूक रखने के लिये अपना कंधा दे रही है।
कांग्रेस को राम मंदिर के मुद्दे पर राम मंदिर के पक्षधरों का खुलकर साथ देना चाहिए, हिन्दूविरोधी होने का ठप्पा हटाने के लिये 2019 का आम चुनाव कांग्रेस के लिए एक मौका भी है। ध्यान रहे कपिल सिब्बल तेज दिमाग के जरूर हैं वह कांग्रेस के लिये कृष्ण नहीं शकुनि सिद्ध हुये हैं।